SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६६) थोकडा संग्रह। करे (२) सिद्ध का विनय करे (३) प्राचार्य का विनय करे (४) उपाध्याय का विनय करे (३) स्थविर का विनय करे (६) गण ( बहुत आचार्यों का समूह) का विनय करे (७) कुल (बहुत आचायों के शिष्यों का समूह ) का विनय करे (८) स्वधर्मी का विनय करे (8) संघ का विनय करे (१०) संभोगी का विनय कर एवं दरा का बहु मान पूर्वक विनय करे जैन शासन में विनय मूल धर्म कहते हैं । विनय करने से अनेक सद्गुणों की प्राप्ति होती है। (४) शुद्धता के तीन भेदः-(१) मन शुद्धता मन से अरिहंत-देव-कि जो ३४ अतिशय, ३५ वाणी, ८ महा प्रति हार्य सहित, १८ दुषण रहित १२ गुण सहित हैं वे ही अमर देव व सच्चे देव हैं। इनके सिवाय हजारों कष्ट पड़े तो भी सरागी देवों को मनमे स्मरण नहीं करे (२) वचन:शुद्धता-वचन से गुण कीर्तन ऐसे अरिहंत देव के करे व इनके सिवाय सरागी देवों का नहीं करे । (३) काया शुद्धता-कीया से अरिहंत सिवाय अन्य सरांगी देवों को नमस्कार नहीं करे। ५ लक्षण के पांच भेद:-१) सम, शत्रू मित्र पर समभाव रक्खे (२) संवेग-वैराग्य भाव रक्खे और संसार असार है, विषय व कषाय से अनन्त काल पर्यन्त भव भ्रमण होता है, इस भव में अच्छी सामग्री मिली है अतः धम का पाराधन करना चाहिये, इत्यादि नित्य चिंतन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy