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( ४८६ )
* योनि पद - ( सूत्र श्री पन्नवणाजी पद नववां )
योनि तीन प्रकार की-शीत योनि, उष्ण योनि शीतोष्ण योनि ।
विस्तार--पहेली नरक से तीसरी नरक तक शीत योनिया, चौथी नरक में शीत योनिया विशेष और उष्ण योनीया कम । पांचवीं नरक में उष्ण योनीया विशेष और शीत योनीया कम । छठी नरक में उष्ण योनीया । सातवीं नरक में महा उष्ण योनीया, अग्नि छोड़ कर चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, समुच्चय तिर्यंच और मनुष्य में तीन योनी मिले तेउ काय में एक उष्ण योनीया संज्ञो तिर्यच संज्ञो मनुष्य और देवता में एक शीतोष्ण योनीया। ___ इनका अल्प बहुत्व-पर्व से कम शीतोष्ण योनीया उन से उष्ण योनीया असंख्यात गुणा उन से अयोनीया सिद्ध भगवन्त अनन्त गुणा उन से शोत योनीया अनन्न गुणा । योनी तीन प्रकार की होती है सचेत्त, अचेत्त, मिश्र नारकी और देवता में योनी एक अचेत । पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय समुच्चय तिर्यच
और समुच्चय मनुष्य में योनी तीन ही मिलती है संज्ञी तियच और संज्ञी मनुष्य में योनी एक मिश्र। इनका अल्प
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