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थोक । संग्रह ।
४ गंध द्वार - गाय, कुत्ता, सर्प आदि के मद्दे से भी अनन्त गुणी अधिक अप्रशस्त गन्ध प्रथम तीन लेश्या की होती है । कपूर, केवड़ा, प्रमुख घोटने के समय जैसी सुगन्ध निकलती है उस से भी अनन्त गुणी अधिक प्रशस्त सुगन्ध पिछली लेश्याओं की होती है ।
५ स्पर्श द्वार - करवत की धार, गाय की जीभ, मुंझ ( ज ) का तथा वांस का पान, आदि से भी अनन्त गुणा तीक्षण प्रशस्त लेश्या का स्पर्श होता है बुर नामक वनस्पति, मक्खन, सरसव के फूल व मखमल से भी अनन्त गुणा अधिक कोमल प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श होता है ।
६ परिणाम द्वार- लेश्या तीन प्रकारे प्रणमेंजघन्य, मध्यम, और उत्कृष्ट तथा नव प्रकारे परिणमे ऊपर के तीन प्रकार के पुनः एक एक के तीन भेद होते हैं जैसे जघन्य का जघन्य, जघन्य का मध्यम, और जघन्य का उत्कृष्ट एवं हरेक के तीन तीन करते नव भेद हुवे । ऐसे ही नव के सत्तावीश, सत्तावीरा के एकाशी और एकाशी के दो सो तालीश भेद होते हैं । इतने भेदों से लेश्या परिणमती है ।
७ लक्षण द्वारः - कृष्ण लेश्या के लक्षण - पांच श्रव का सेवन करने वाला, अगुप्तिवन्त, छकाय जीव का हिंसक, आरम्भ का तीव्र परिणामी व द्वेषी, पाप करने में साह
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