________________
धम ध्यान।
(४८१)
द्वारा जीव-सिद्धि रुप महा नगर के अन्दर पहुंच जाता है। जहां अनन्त अतुल विमल सिद्ध के सुख प्राप्त करता है । यह धर्म ध्यान की चौथी अणुप्पेहा है । एवं धर्म ध्यान के गुण जान कर सदा धर्म ध्यान ध्यावें जिससे जीव को परम सुख की प्राप्ति होवे ।
॥ इति धर्म ध्यान सम्पूर्ण ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org