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________________ ( ४७४ ) थोकडा संग्रह | जाति स्मरणादिक ज्ञान से श्रुत सहित चारित्र धर्म करने की रुचि उपजे इसे निसग्ग रुई कहते हैं । ३ सूत्त रुई - इसके दो भेद - १ अंग पविठ २ अंग बाहिर । आचारांगादि १२ अंग अंगपविठ इनमें से ११ अंग कालिक और बारहवां अंग दृष्टिवाद यह उत्कालिक । अंग बाहिर के दो भेद - १ आवश्यक २ श्रावश्यक व्यतिरिक्त । श्रावश्यक-सामायकादिक छ अध्ययन उत्कालिक तथा उत्तराध्ययनादिक कालिक सूत्र । उववाई प्रमुख उत्कालिक सूत्र सुनने की तथा पढने की रुचि उत्पन्न होवे उसे सूत्र रुचि कहते हैं । ----- ४ उवएसरुई - अज्ञान द्वारा उपार्जित कर्मों को ज्ञान द्वारा खपावे, ज्ञान से नये कर्म न बान्धे, मिथ्यात्व द्वारा उपार्जित कर्मों को समकित द्वारा खपावे, समकित के द्वारा नवीन कर्म नहीं बान्धे । अत्रत से बन्धे हुवे कर्मों को व्रत द्वारा खपावे व व्रत से नये कर्म न बान्धे । प्रमाद द्वारा उपार्जित कर्मों को अप्रमाद से खपावे और अप्रमाद के द्वारा नये कर्म न बान्धे । कपाय द्वारा बन्धे हुवे कम को अकषाय द्वारा खपाव व अकषाय के द्वारा नये कर्म न बान्धे | अशुभ योग से उपार्जित कर्मों को शुभ योग से पावे व शुभ योग के द्वारा नये कर्म न बान्धे । पांच इंद्रिय के स्वाद रुप श्रव से उपार्जित कर्म तप रूप संवर द्वारा खपावे और तप रूप संबर से नवीन कर्म न बांधे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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