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थोकडा संग्रह।
२ अवायविजए-संपार के अन्दर जीव की जिसके द्वारा दुख प्राप्त होता है उनका चितवन करे अथवा मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद, कषाय अशुभ योग तथा अठारह पाप स्थानक, काय की हिंमा एवं इनको दुखों का कारण जानकर आश्रव मार्ग का त्याग करे व संवर मार्ग को आदरे । जिस से जीव को दुख नहीं होवे ।
३ वियग विजए-जीव को किस प्रकार सुख दुख की प्राप्ति होती है अर्थात् वो इन्हें किस प्रकार भोगता है इसपर चिंतन व मनन करे । जीव जितने रस के द्वारा जैसे शुभा शुभ ज्ञानावरणीयादिक कमाँ का उपार्जन किया है वैसे ही शुभा शुभ कर्मों के उदय से जीव सुख दुख का अनुभव करता है । सुख दुख अनुभव करते समय किसी पर राग द्वेष नहीं करना चाहिये किन्नु समता भाव रखना चाहिये । मन वचन काया के शुभ योग सहित जैन धर्म के अन्दर प्रवृत होना चाहिये जिससे जीव को निराबाध परम सुख की प्राप्ति हो ।
४ संठाण विजए:- तीनों लोकों के आकार का स्वरूप चितवे । लोक का स्वरूप इस प्रकार हैं-यह लोक सुपइठक के आकार वत् है । जीव-अजीवों से समग्र भरा हुवा है । असंख्यात योजन की कोड़ा क्रोड़ प्रमाणे तीछा लोक है जिसके अन्दर असंख्यात द्वीप समुद्र है असंख्यात वाणव्यन्तर के नगर है, असंख्यात ज्योतषी के विमान हैं
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