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(४६०)
थोकडा संग्रह।
आराधिक विराधिक ऋ ( श्री भगवतीजी सूत्र, शतक पहेला,उद्देश दूसरा)
१ असंजति भव्य द्रव्यदेव जघन्य भवनपति उत्कृष्ट नव ग्रीयवेक तक जावे।
२ आराधिक साधु जघन्य पहले देवलोक तक उत्कृष्ट सर्वार्थ सिद्ध विमान तक जावे ।
३ विराधिक साधु ज० भवन पति उत्कृष्ट पहले देवलोक तक जावे।
४ श्राराधिक श्रावक जघन्य पहले देवलोक तक उत्कृष्ट बारहवें देवलोक तक जावे ।
५ विराधिक श्रावक जघन्य भवनपति उत्कृष्ट ज्योतिषी तक जावे।
६ असंजति तिर्यच ज० भवनपति उत्कृष्ट वाण व्यन्तर तक जावे।
७ तापस के मतवाले ज० भवनपति उत्कृष्ट ज्योतिषी तक जावे।
८ कंदीया साधु जघन्य भवनपति उत्कृष्ट पहला देवलोक तक जावे।
६ अंबड़ सन्यासी के मतवाले जघन्य भवनपति उत्कृष्ट पाँचवें देवलोक तक जावे ।
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