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________________ पुद्गल परावर्त । (३७३) चोथे काल चक के चोथे समय में मरे, बीचमें नियम के बिना किसी भी समय में मरे ( यह हिसाब में नहीं गिना जाता ) एवं एक काल चक्र के जितने समय होवे उतने काल चक्र के अनुक्रम से नियमित समय में मरे। ७ भाव से बादर पुद्गल परावत-जीव के असंख्यात परिणाम होते हैं जिनमें से प्रथम परिणाम पर मरे पश्चात् ३-२ ५.४-७-६ एवं अनुक्रम के बिना प्रत्येक परिणाम पर मरे व मर कर असंख्यात परिणाम पूर्ण करे। ___ ८ भाव से सूक्ष्म पुद्गल परावर्त-जीव के असंख्यात परिणाम होते हैं उनमें से प्रथम परिणाम पर मरे पश्चात् बीच में कितना ही समय जाने बाद दूसरे परिणाम पर, व अनुक्रम से तीसरे परिणामें चोथे परिणामें एवं असंख्य परिणाम पर मर कर पूर्ण करे । के इति गुण द्वार* ३ त्रिसंख्या द्वार १ पुद्गल परावर्त-सर्व जीवों ने कितने किये २ एक वचन से एक जीव ने २४ दंडक में कितने पुल परावर्त किये ३ बहु वचन से सर्व जीवों ने २४ दंडक में कितने पुद्गल परावर्त किये। १ सर्व जीवों ने-औदारिक पुद्गल परावर्त्त; वैक्रिय पुद्गल परावर्त; तैजस् पुद्गल परावर्त; आदि ये सातों पुद्गल परावर्त अनन्त अनन्त वार किये ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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