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________________ बावन बोल । (३४६). वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि १ समकित दृष्टि; भव्य १ दंडक १६ (पांच एकेन्द्रिय छोड़कर ), पक्ष १ शुक्ल । ३ मिश्र गुण स्थानक में भाव ३ ऊपर अनुसार श्रात्मा ६ (ज्ञान चारित्र छोड़कर ), लब्धि ५, वीये १ बाल वीर्य, दृष्टि १ मिश्र दृष्टि, भव्य १, दंडक १६, (५ एकेन्द्रिय तीन विकलेन्द्रिय छोड़कर ) पक्ष १ शुक्ल । ४ अवती सम्यक्त्व दृष्टि में भाव ५, आत्मा ७, ( चारित्र छोड़कर ), लब्धि ५, वीर्य १ बाल वीर्य दृष्टि १ समकित दृष्टि; भव्य १ दंडक १६ ऊपर अनुसार, पक्ष १ शुक्ल । ५ देश व्रती गुण स्थानक में भाव ५; आत्मा ७ (देश से चारित्र है सर्व से नहीं ); लब्धि ५; वीर्य १; बाल पंडित वीर्य; दृष्टि १ समकित हाष्ट; भव्य १ दंडक दो ( मनुष्य व तिथंच के ) पक्ष १ शुक्ल । - ६ प्रमत्त संयति गुण स्थानक में भाव ५; आत्मा ८; लब्धि ५; वीर्य १ पंडित वीर्यः दृष्टि १ समकित दृष्टि भव्य १; दंडक १ मनुष्य का, पक्ष १ शुक्ल । ७ अप्रमत्त संयति गुण में-भाव ५, आत्मा ८ लब्धि ५, वीर्य १ पण्ति वीर्य, दृष्ट १ समकित भव्य १, दण्डक १ मनुष्य का, पक्ष १ शुक्ल । नियी बादर गुण० में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १ पण्डित वीर्य, दृष्टि १ समकित दृष्टि, भध्य १, दण्डक १ मनुष्य का पक्ष १ शुक्ल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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