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________________ (२४) थोकडा सं ह। १ स्वयं (खुद) अपने आपको तथा दूसरों को परितापना उपजावे तो सहथ्य पारितावणिया क्रिया लगे। २ दूसरों के द्वारा अपने आपको तथा अन्य किसी को परितापना उपजावे तो परहथ्थ पारिताव.. णिया क्रिया लगे। ५ पाणईवाईया क्रिया:-के दो भेद १ सहथ्थ पाणाई वाईया २ परहथ्थ पाणाईवाईया। १ अपने हाथों से अपने तथा अन्य दूसरों के प्राण हरन करे तो सहथ्य पाणाईवाईया क्रिया लगे। २ किसी अन्य द्वारा अपने तथा दूसरों के प्राण हरे तो परहथ्थ पाणाईवाईया क्रिया लगे। ६ अपच खाण क्रिया के दो भेद १ जीव अपच वाण क्रिया २ अजीव अपञ्च वाण क्रिया । १ जीव का प्रत्य ख्यान नहीं करे तो जीव अपच्च खाण क्रिया लगे। २ अजीव ( मदिरादिक) का प्रत्याख्यान नहीं करे तो अजीव अपच्चखाण क्रिया लगे। ७ प्रारमिया क्रिया के दो भेद १ जीव प्रारंभिया २ अजीव आरंभिया । १ जीवों का प्रारम्भ करे तो जीव आरंभिया क्रिया लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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