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________________ बड़ा बांसठीया। (३३३ ) aaaaaaamanaras _____८ नी० बा०६ अनी. बा. १० सूक्ष्म सं० ११ उप० मो० १२ क्षीण मो०- में जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुणस्थानक अपना २ योग 8.-४ मनके ४ वचन के १ औदारिक उपयोग ७..४ ज्ञान ३ दर्शन लश्या १ शुक्ल । १३ सयोगी के वली में जीव का भेद १, गुणस्थानक १ तेरहवां, योग ७-२ मनके २ वचन के, २ औदारिक के १ कामण उपयोग२- केवल का । लेश्या१शुक्ल । १४ अयोगी केवली में जीव का भेद १, गुणस्थानक १, योग नहीं, उपयोग २ केवल के, लेश्या नहीं। चौदह गुणस्थानक में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम उपशम मोहनीय वाला २ इससे क्षीण मोहनीय वाला संख्यात गुणा ३ इससे अाठवें, नववे दशवें गुणस्थानक वाले परस्पर तुल्य व संख्यात गुणे, ४ इससे सयोगी केवली संख्यात गुणा ५ इससे अप्रमत्त संयत गुणस्थानक वाला संख्यात गुणा ६ इससे प्रमत्त सयंत गुणस्थानक वाला संख्यात गुणा ७ इससे देश व्रती असंख्यात गुणा ८ इससे सास्वादन सम्यक् दृष्टि असंख्यात गुणा 8 इससे मिश्र दृष्टि असंख्यात गुणा १० इससे अवती समदृष्टि असख्यात गुणा ११ इससे अयोगी केवली (सिद्ध सहित ) अनन्त गुणा १२ इससे मिथ्यादृष्टि अनन्त गुणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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