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________________ ( ३३२) थोकडा संग्रह। - २ सास्वादान सम्यकदृष्टि में-जीव का भेद ६ सम्यक् दृष्टि वत्, गुण स्थानक १ दूसरा, योग १३ आहारिक का दो छोड़कर, उपयोग ६.३ ज्ञान ३ दर्शन लेश्या ६। . ३ मिश्र दृष्टि में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुण स्थानक १ तीसरा, याग १०-४ मन के, ४ वचन के १ औदारिक का १ वैक्रिय का, उपयोग ६.३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६। ४ अव्रती सम्यक् दृष्टि में-जीव का भेद २ संज्ञी का गुण स्थानक १ चोथा, योग १३ सास्वादन सम्यक् दृष्टि वत् उपयोग ६-३ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६। ५ देश व्रती ( संयता संयति ) में -जीव का भेद ? १४ वाँ, गुण स्थानक १ पांचवाँ, योग १२-२ आहारिक का व १ कामेण का छोड़कर उपयोग ६-३ ज्ञान ३ दर्शन लेश्या ६। ६ प्रमत्त संयति में जीव का भेद १ गुण स्थानक १.छठा योग १४ कार्मण का छोड़कर, उपयोग ७-४ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ । ७ अप्रमत्त संयति में-जीव का भेद १ गुणस्थानक ८ योग ११.४ मन के ४ वचन के १ औदारिक १ वैक्रिय १ आहारिक, उपयोग ७.४ ज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ३ ऊपर की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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