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________________ नव तत्त्व । (२१) ( अर्थात् ३३३ धनुष्य ३२ अंगुल प्रमाणे क्षेत्र में सिद्ध भगवान रहते हैं) ४ स्पर्शना द्वार:-सिद्ध क्षेत्र से कुछ अधिक सिद्ध की स्पर्शना है। ५ काल द्वार:-एक सिद्ध आश्री इनकी आदि है परन्तु अन्त नहीं, सर्व सिद्ध पाश्री आदि भी नहीं व अन्त भी नहीं। ६ भाग द्वार:-सर्व जीवों से सिद्ध के जीव अनन्त वें भाग हैं व सर्व लोक के असंख्यातवें भाग हैं। ७ भाव द्वार:-सिद्धों में क्षायिक भाव तो केवल ज्ञान, केवल दर्शन और क्षायिक समकित्व है और पारिणामिक भाव-यह सिद्ध पना है। ८ अन्तरभाव:-सिद्धों को फिर लौटकर संसार में नहीं थाना पड़ता है, जहां एक सिद्ध तहां अनन्त और जहां अनन्त वहां एक सिद्ध इसलिये सिद्धों में अन्तर नहीं। ६ अल्प बहुत्व द्वार:-सब से कम नपुसंक सिद्ध, उससे स्त्री संख्यात गुणी सिद्ध और उससे पुरुष संख्यात गुणे । एक समय में नपुसंक १० सिद्ध होते हैं, स्त्री २० और पुरुष १०८ सिद्ध होते हैं। मोक्ष में कौन जाते हैं:-१ भव्य सिद्धक २ बादर ३ त्रस ४ संज्ञो ५ पर्याप्ती ६ वज्र ऋषभ नाराच संघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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