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________________ (२०) थोकडा संग्रह। सिद्धा ८ स्त्रो लिङ्ग सिद्धा ६ पुरुष लिङ्ग सिद्धा १० नपुसंक लिङ्ग सिद्धा ११ स्वयं लिङ्ग सिद्धा १२ अन्य लिङ्ग सिद्धा १३ गृहस्थ लिङ्ग सिद्धा १४ एक सिद्धा १५ अनेक सिद्धा। मोक्ष के नव द्वार १ सद् २ द्रव्य ३ क्षेत्र ४ स्पर्शना ५ काल ६ भाग ७ भाव ८ अंतर ६ अल्प बहुत्व । १ सद् पद प्ररूपणाद्वार:-मोक्ष गति पूर्व समय में थी, वर्तमान समय में है व आगामी काल में रहेगी उसका अस्तित्व है, आकाश कुसुमवत् उसकी नास्ति नहीं। २ द्रव्य द्वारः-सिद्ध अनन्त है, अभव्य जीव से अनन्त गुणे अधिक हैं एक वनस्पति काय के जीवों को छोड़ कर दूसरे २३ दंडक के जीवों से सिद्ध अनन्त हैं। ३ क्षेत्र द्वार:-सिद्ध शिला प्रमाण (विस्तार में ) है यह सिद्ध शिला ४५ लाख योजन लम्बी व पोली है मध्य में पाठ योजन की जाड़ी है। किनारों के पास से मक्षिका के पास से भी पतली है । शुद्ध सोना के समान शंख, चन्द्र, बगुला, रत्न, चादी का पट, मोती का हार व क्षीर सागर के जल से अधिक उज्वल है। उसकी परिधि १,४२,३०, २४६ योजन, १ गाउ १७६६ धनुष्य व पोने छ अंगल झाझरी है । सिद्ध के रहने का स्थान सिद्ध शिला के ऊपर योजन के छेले गाऊ के छठे भाग में है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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