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________________ ततीश पदवी। ( २८७) ८पांच स्थावर में चौदह पदवी का जावे । सात एकेन्द्रिय रत्न,स्त्री छोड़ शेष ६ पंचेन्द्रिय रत्न और मांडलिक राजा । - तीन विकलेन्द्रिय. तिथंच पंचेंद्रिय और मनुष्य में पंन्द्रह पदवी का जावे । कार की चौदह पदवी और १ समद्रष्टि एवं १५ संज्ञी, असंज्ञी, तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि में २३ पदवि. यों में की जो २ पदवी मिले उस पर ५५ बोल । १ संज्ञी में १५ पदवी मिले, सात एकेन्द्रिय रत्न और १ फेवली नहीं मिले। २ असंज्ञी में आठ पदवी मिले, सात एकेन्द्रिय रत्न और १ समकित एवं आठ । ३ तीर्थकर में ६ पदवी पावे-१ तीर्थंकर २ चक्रवर्ती ३ केवली ४ साधु ५ समकित ६ मांडलिक राजा । ४ चक्रवर्ती में ६ पदवी पावे-तीर्थकर के समान । ५ वासुदेव में ३ पदवी पावे-१ वासुदेव २ मांडलिक ३ समकित । ६ बलदेव में ५ पदवी पावे-१ बलदेव २ केवली ३ साधु ४ समकात ५ मांडलिक । ७ मांडलिक में 8 पदवी पावे-नव उत्तम पदवी । ८ मनुष्य में १३ पदवी पावे-नव उत्तम पदवी १० सेनापति ११ गाथापति १२ वार्षिक १३ पुरोहित एवं १३ पदवी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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