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________________ थोकडा संग्रह | W^^ और ३२ श्राङ्गुल का मुख होता है । और ६६ अमुल की परिधि ( घेराव ) है । एवं ३३ पदवी का नाम तथा चक्रवर्ती के चौदह रत्नों का विवेचन कहा । नरकादिक चार गति में से निकले हुवे जीव २३ पदवियों में की कोन २ सी पदवी पावे- इस पर पन्द्रह बोल | ( २८४ ) १ पहेली नरक से निकले हुवे जीव १६ पदवी पावेसात एकेन्द्रिय रत्न छोड़ कर । २ दूसरी नरक से निकले हुवे जीव २३ पदवी में से १५ पदवी पावे - सात एकेन्द्रिय रत्न और एक चक्रवर्ती एवं आठ नहीं पावे । ३ तीसरी नरक से निकले हुवे जीव १३ पदवी पावेसात एकेन्द्रिय रत्न, चक्रवर्ती, वासुदेव एवं दश पदवी नहीं पावे | ४ चोथी नरक से निकले हुवे जीव १२ पदवी पावेदश तो ऊपर की और एक तीर्थंकर एवं ११ नहीं पावे | ५ पांचवी नरक से निकले हुवे जीव ११ पदवी पावे११ तो ऊपर की और बारहवी केवली की नहीं पावे । ६ छठ्ठी नरक से निकले हुवे जीव दश पदवी पावें, ऊपर की बारह और एक साधु की एवं तेरह नहीं । ७ सातवीं नरक से निकले हुवे जीव तीन पदवी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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