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( २७० )
थोकडा संग्रह |
प्रदेशी स्कन्धों के पर्यव त्रिप्रदेशी स्कन्धों के पर्यत्र, यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्यव का अपहरण करने में अनन्त काल चक्र लग जाते हैं तो भी छूटे नहीं इस प्रकार द्रव्य से भाव सूक्ष्म होते हैं, काल को चने की प्रोपमा क्षेत्र को ज्वार की ओपमा द्रव्य को तिल की प्रोपमा और भाव को खसखस की ओपमा दी गई है ।
पूर्व चार प्रकार की वृद्धि की जो रीति कही गई हैं उस में से क्षेत्र से व काल से किस प्रकार वर्धमान ज्ञान होता है उसका वर्णन:
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१ क्षेत्र से श्रगुल का असंख्यातवें भाग जाने देखे व काल से वलिका के असंख्यातवें भाग की बात गत व भविष्य काल की जाने देखे ।
२ क्षेत्र से गुल के संख्यातवें भाग जाने देखे व काल से श्रावलिका के संख्यातवें भाग की बात गत व भविष्य काल की जाने देखे ।
३ क्षेत्र से एक आंगुल मात्र क्षेत्र जाने देखे व काल से वलिका से कुछ न्यून जाने देखे ।
४ क्षेत्र से पृथकू ( दो से नव तक ) आंगुल की बात जाने देखे व काल से श्रावलिका संपूर्ण काल की बात गत व भविष्य काल की जाने देखे ।
५ क्षेत्र से एक हाथ प्रमाण क्षेत्र जाने देखे व काल से अन्तर्मुहूर्त (मुहूर्त में न्यून ) काल की बात गत व भवि
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