SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ T २६४ ) www. सामायिक प्रमुख २ आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद १ कालिक शुद्ध २उत्कालिक श्रुत | थोडा संग्रह | १ कालिक श्रुत + इसके अनेक भेद हैं- उत्तराध्ययन, दशाश्रुत स्कन्ध, वृहत् कल्प, व्यवहार प्रमुख एकत्रीश सूत्र कालिक के नाम नंदि सूत्र में आये हैं । तथा जिन२ तीर्थंकर के जितने शिष्य ( जिनके चार बुद्धि होवे ) होवे उतने पन्ना सिद्धान्त जानना जैसे ऋषभ देव के ८४००० लाख पन्ना तथा २२ तीर्थंकर के संख्याता हजार पहन्ना तथा महावीर स्वामी के १४ हजार पन्ना तथा सर्व गणधर के पइन्ना व प्रत्येक बुद्ध के बनाए हुए पन्ना ये सर्व कालिक जानना एवं कालिक श्रुत | २ उत्कालिक श्रुत-यह अनेक प्रकार का है । दवैकालिक प्रमुख २६ प्रकार के शास्त्रों के नाम नंदिसूत्र में आये हैं । ये और इनके सिवाय और भी अनेक प्रकार के शास्त्र हैं परन्तु वर्तमान में अनेक शास्त्र विच्छेद हो गये हैं । } द्वादशांग सिद्धान्त आचार्य की सन्दूक समान, गत काल में अनन्त जीव आज्ञा का आराधन करके संसार दुख से मुक्त हुवे हैं वर्तमान काल में संख्यात जीव दुख से मुक्त हो रहे हैं व भविष्य में आज्ञा का आराधन करके x पहेले प्रहर तथा चोथे प्रहर जिसकी स्वाध्याय होती है वो कालिक श्रत कहलाता है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy