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पांच ज्ञान का विवेचन।
(२६३)
जीव को न रहे तो क्या होवे ? तप गुरु ने उत्तर दिया कि यदि इतना जान पना न रहे तो जीवपना मिट कर अजीव हो जाता है व चैतन्य मिट कर जड़पना ( जडत्व ) हो जाता है । अतः हे शिष्य ! जीव को सर्व प्रदेशे अक्षर का अनन्तवें भाग ज्ञान सदा रहता है । जैसे वर्षा ऋतु में चन्द्र तथा सूर्य ढंके हुवे रहने पर भी सर्वथा चन्द्र तथा सूर्य की प्रभा छिप नहीं सकती है वैसे ही ज्ञानावरणीय कर्म के प्रावरण के उदय से भी चैतन्यत्व सर्वथा छिप नहीं सकता । निगोद के जीवों को भी अक्षर के अनन्तवें भाग सदा ज्ञान रहता है।
११ गमिक श्रुत-बारहवां अंग दृष्टिवाद अनेक वार समान पाठ आने से।
१२ अगमिक श्रुत-कालिक श्रत ११ अंग अ.चारांग
१३ अंग प्रविष्ट बारह अंग ( आचारांगादि से दृष्टिवाद पर्यन्त ) सूत्र में इसका विस्तार बहुत है अतः वहां से जानो।
१४ अनंगप्रविष्ट-समुच्चय दो प्रकार का १ आवश्यक २ आवश्यक व्यतिरिक्त । १ आवश्यक के ६ अध्ययन . * अथवा समुच्चय दो प्रकार के श्रुत कहे हैं । अंग पविठंच (अंग प्रविष्ट ) तथा अंग बाहिरं (अनंग प्रविष्ट ) गमिक तथा अगमिक के भेद में समावेश सूत्र कार ने किये हैं । मूल में अलगर भी नाम आये
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