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________________ र २६०) थोकडा संग्रह। १ संज्ञी कालिकोपदेशः-श्रुत सुनकर १ विचारना २ निश्चय करना ३ समुच्चय अर्थ की गवेषणा करना ४ विशेष अर्थ की गवेषणा करना ५ सोचना ( चिन्ता करना)६ निश्चय करके पुनः विचार करना ये ६ बोल संज्ञी जीव के होते हैं । इस लिये इसे संज्ञी कालिकोपदेश श्रुत कहते हैं। २ संज्ञी हेतूपदेश:-जो संज्ञी धारकर रक्खे ।। ३ संज्ञी दृष्टि वादोपदेश-जो क्षयोपशम भाव से सुने । अर्थात् शास्त्र को हेतु सहित, द्रव्य अर्थ सहित, कारण युक्ति सहित, उपयोग सहित पूर्वापर विचार सहित जो पढे, पढावे, सुने उसे संज्ञी श्रा कहते है। असंज्ञी श्रुत के तीन भेदः-१ असंही कालिकोपदेश २ असंज्ञी हेतूपदेश ३ असंज्ञी दृष्टिवादोपदेश । (१) असंही कालिकोपदेश श्रुत-जो सुने परन्तु विचार नहीं । संज्ञी के जो ६ बोल होते है वो असंज्ञी के नहीं। । अंसज्ञी हेतूपदेश श्रुत-जो सुन कर धारण नहीं करे। (३) असंज्ञी दृष्टिवादोपदेश-क्षयोपशम भाव से जो नहीं सुने । एवं ये तीन बोल असंशी आश्री कहे, अ. र्थात् असंज्ञी श्रुत-जो भावार्थ रहित, विचार तथा उपयोग शून्य, पूर्वक आलोच रहित, निर्णय रहित ओघ संज्ञा से पढे तथा पढावे वा सुने उसे असंज्ञी श्रुत कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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