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पांच ज्ञान का विवे वन ।
( २५६ )
केतकी प्रमुख की सुगन्ध सूंघ कर कहे कि यह केतकी प्रमुख की सुगन्ध है अतः केतकी प्रमुख अक्षर का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय लब्धि से हुवा इस लिये इसे घ्राणेन्द्रिय लब्धि श्रुत कहते हैं।
४ रसेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत:-जिह्वा से शकर प्रमुख का स्वाद जान कर कहे कि यह शकर प्रमुख का स्वाद है अतः इस अक्षर का ज्ञान रसेन्द्रिय से हुवा इसलिये इसे रसेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत कहते हैं।
५ स्पर्शेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुतः-शीत, उष्ण आदि का स्पर्श होने से जाने कि यह शीत व उष्ण है अतः इस अक्षर का ज्ञान स्पर्शेन्द्रिय से हुवा इस लिये इसे स्पर्शेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत कहते हैं।
६ नोइन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुतः-मन में चिन्ता व विचार करते हुवे स्मरण हुवा कि मैने अनुक सोचा व विचारा अतः इस स्मरण के अक्षर का ज्ञान मन से-नो इन्द्रिय से हुवा इस लिये इसे नोइन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत कहते हैं।
२ अनक्षर श्रुतः-इसके अनेक भेद हैं, अक्षर का उच्चारण किये बिना शब्द, छींक, उधरस, उच्छास, निःश्वास, बगासी, नाक निषीक तथा नगारे प्रमुख का शब्द अनक्षरीवाणी द्वारा जान लेना इसे अनक्षर श्रत कहते हैं। . ३ संज्ञी श्रुतः-इसके तीन भेद-१ संज्ञी कालिकोपदेश २ संज्ञी हेतूपदेश ३ संज्ञी दृष्टिवादोपदेश ।
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