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________________ ( १४ ) थोकडा संग्रह | २५क्रिया, ये४२ भेद आश्रव के जान कर जो इन्हें छोड़ेगा वह इस भव में तथा पर भव में निरा बोध परम सुख पावेगा । ॥ इति श्रव तत्व ॥ (६) संवर तत्व के लक्षण तथा भेद. संवर तन्त्र-जीव रूपी तालाब के अन्दर इन्द्रियादिक नालों व छिद्रों के द्वारा आने वाले कर्म रूपी जल के प्रवाह को व्रत प्रत्याख्यानादि द्वारा जो रोकता है उसे संवर तच्च कहते हैं संवर के सामान्य से २० भेद व विशेष ५७ भेद है । सामान्य २० भेद:- १ श्रुतेन्द्रिय निग्रह ( संवरे ) २ चक्षु इन्द्रिय निग्रह ३ घ्राणेन्द्रिय निग्रह ४ रमेन्द्रिय निग्रह ५ स्पर्शेन्द्रिय निग्रह ६ मन निग्रह ७ वचन निग्रह ८ काया निग्रह ६ भण्डोपकरण यना से लेवे तथा रक्वे १० सुची कुशाग्र भी यत्ता से काम में लेवे ११ दया १२ सत्य १३ अचौर्य १४ ब्रह्मचर्ष १५ अपरिग्रह ( निर्ममत्व ) १६ सम्यक्त्व १७ व्रत १८ अप्रमाद १६ श्रकषाय २० शुभ योग । संवर के ५७ भेद: पांच समिति :- १ इर्या समिति २ भाषा समिति ३ एषणा समिति ४ आदान भण्डमात्र निक्षेपना समिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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