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नव तत्त्व।
(१३)
जाते हैं । ये पाप जान कर जो पाप के कारण को छोड़ेंगें वे इस भव में तथा पर भव में निराबाध परम सुख पावेंगे।
॥ इति पाप तत्त्व ॥
(५) अाश्रव तत्व के लक्षण तथा भेद.
अाश्रव तत्त्व-जीव रूपी तालाब के अन्दर अव्रत तथा अप्रत्याख्यान द्वारा, विषय कषाय का सेवन करने से इन्द्रियादिक नालों के अन्दर से जो कर्म रूपी जल का प्रवाह आता है उसे आश्रय कहते हैं। ___ यह आश्रयं जघन्य २० प्रकार से और उत्कृष्ट ४२ प्रकार से होता है।
जघन्य २० प्रकार-१ श्रोतेन्द्रिय असंवर २ चक्षु इन्द्रिय असंवर ६ घ्राणेन्द्रिय असंबर ४ रसेन्द्रिय असंवर ५ स्पर्शेन्द्रिय असंवर ६ मन असंवर ७ वचन असंवर ८ काय असंवर ६ वस्त्र वतनादि भएडोपकरण प्रयत्ना से लेवे तथा रक्खे १० सुची कुशाग्र मात्र भी प्रयत्ना से काम में लेवे ११ प्राणातिपात १२ मृषावाद १३ अदत्तादान १४ मैथुन १५ परिग्रह १६ मिथ्यात्व १७ अत्रत १८ प्रमाद १६ कषाय २० अशुभ योग ।
विशेष रीति से माश्रय के ४२ भेद. ५ आश्रय,५ इन्द्रिय विषय,४ कषाय ३ अशुभ योग
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