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श्रीगुणस्थान द्वार।
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का होवे वहां चलने का नहीं । दशवें, इग्यारहवें बारहवें गुण० १४. परिषह पावे ( मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले ८ छोड़ा कर )-अचल, अरति, स्त्री का, बैठने का, आक्रोश का, मेल.. का, सत्कार. पुरस्कार का एवं सातः चारित्रः मोहनीय. कर्म.. के उदयः होने से
और. १ देसण परिषह ( दर्शन मोहनीय के उदय होने से) एवं पाठः परिषहः छोड़ कर. शेष. १४: इन में से.. एक समय में. १२. वेदे शीत.. का वेदे वहां ताप का नहीं, और. ताप का वहां शीत का नहीं, चलने का होवे. वहां बैठने का नहीं और बैठने का होवे वहां चलने का नहीं । तेरहवें चौदहवें गुण०.११परिषह पावे। उक्त परिषह में से तीन छोड़ कर शेष ११. (१) प्रज्ञा का (२) अज्ञान का ये दो परिषह ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से और (३)अलाभ का परिषह अन्तराय कर्म के उदय से एवं ३. परिषह छोड़कर। इन परिषह में से एक समय में वेदे. शीत का होवे वहां ताप का नहीं और ताप का वेदे वहां शीत का नहीं. चलने का होवे वहां बैठने का नहीं और. बैठने का होवे. वहां चलने का नहीं।
१४.मार्गणा द्वार। पहेले. गुण मार्गणा ४, तीसरे, चौथे, पांचवें सातवें जावे। दूसरे गुण०. मार्गणा १,गिरे. तो पहेले गु०आवे (चढे. नहीं) तीसरे. गु० ४. गिरे तो पहेले पावे. और चढे. तो
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