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से भाव से नोकारसी आदि छमासी तप जाने सदेहे परूपे फरसे । यह जीव जघन्य उसी भव में उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जावे। यहां से दो श्रेणी होती है । १उपशम श्रेणी २ क्षपक श्रेणी । उपशम श्रेणी वाला जीव मोहनीय कर्म की प्रकृति के दलों को उपशम करता हुवा इग्यारहवं गुणस्थान तक चला आता है । पडिवाइ भी हो जाता है व हायमान परिणाम भी परिण मता है । क्षपक श्रेणी वाला जीव मोहनीय कर्म की प्रकृति के दलों को क्षय करता हुवा शुद्ध परिणाम से निर्जरा करता हुवा नववें दशवें गुणस्थान पर होता हुवा ग्यारहवें को छोड़ बारहवें गुणस्थान पर चला जाता है यह अपडिवाइ होता है व वर्द्धमान परि. णाम में परिणमता है । जो निवतो है बादर कषाय से, बादर संपराय क्रिया से, श्रेणी करे अभ्यन्तर परिणाम पूर्वक अवसाय स्थिर करे व बादर चपलता से निवतो है उसे नियट्टि बादर गुणस्थान कहते हैं ( दूसरा नाम अपूर्व करण गुणस्थान भी है) किसी समय पूर्व में पहिले जीव ने यह श्रेणी कभी की नहीं और इस गुणस्थान पर पहेला ही करण पंडित वीर्य का प्रावरण । क्षय करण रूप करण परिणाम धारा, वर्द्धन रूप श्रेणी करे उसे अपूर्व करण गुण. स्थान कहते हैं।
६ अनियहि बादर गुणस्थान उपरोक्त १७ प्रकृति और संज्वलन की माया, स्त्री
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