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थोकडा संग्रह ।
६ प्रमत्त संयति गुण स्थान:- उक्त ११ प्रकृति प प्रत्याख्यानी के ध, मान, माया, लोभ एवं पन्द्रह प्रकृति का क्षयोपशम करे । इन १५ प्रकृतियों का क्षय करे वो क्षायिक समकित और १५ प्रकृति का उपशम करे वो उपशम समक्ति , और कुछ उपशमावे कुछ क्षय करे वो क्षयोपशम समरित । उस समय गौतम स्वामी हाथ जोड़ मान मोड़ श्री भगवान को पूछने लगे कि इस गुणस्थान वाले को किस गुण की प्राप्ति होवे भगवंत ने उत्तर दिया यह जीव द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भावसे जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप जाने श्रद्धे परुपे, फरसे । साधुत्व एक भव में नवसोवार आवे यह जीव जघन्य तीसरे भवमें उत्कृष्ट १५ भवमें मौच जावे । आराधिक जीव ज. पहेले देवलोक में उ. अनुत्तर विमान में उपजे । १७ भेद से संयम निर्मल पाले, १२ भेदे तपस्या करे, परन्तु योग चपलता, कषाय चपलता, वचन चालता,व दृष्टि चपलता कुछ शेष रह जाने से यद्यपि उत्तम अप्रमाद से रहे तो भी प्रमाद रह जाता है इस लिये प्रमाद करके, कृष्णादिक द्रव्य लेश्या व अशुभ योग से किसी समय प्रणति बदल जाती है जिससे पाय प्रकृष्टमत्त बन जाता है इसे प्रमत्त संयति गुणस्थान कहते हैं। - अप्रमत्त संयति गुणस्थान:-पांव प्रमाद का त्याग करे तब सातवें गुणस्थान प्राव पांच प्रमाद का नाम ।
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