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थोकडा संग्रह।
हाथ जोड़ मान मोड़ श्री भगवंत को पूछने लगे कि स्वामी नाथ इस गुणस्थान के जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है। उत्तर में श्रीभगवंत ने फरमाया कि हे गौतम ! समकित व्यवहार से शुद्ध प्रवर्तता हुवा यह जीव जघन्य तीसरे भव में व उत्कृष्ट पन्द्रहवें भव में मोक्ष जावे । वेदक समकित एक वार आवे इस समकित की स्थिति एक समय की, पूर्व में अगर आयुष्य का बंध न पड़ा हो तो फिर सात बोल का बंध नहीं पड़े-नरक का आयुष्य, भवनपति का आयु. प्य तियच का आयुष्य, बाण व्यन्तर का आयुष्य, ज्योतिषी का आयुष्य, स्त्री वेद, नपुंसक वेद-एवं सात का आयुष्य बन्ध नहीं पड़। यह जीव समकित के आठ आचार आराधता हुवा, व चतुर्विध संघ की वात्सल्यता पूर्वक, परम हर्ष सहित भक्ति (सेवा) करता हुवा जघन्य पहेले देवलोक में उत्पन्न होवे, उत्कृष्ट बारहवें दवलोक में । शाख पन्नवणाजी सूत्र की । पूर्व कर्म के उदय से व्रत पञ्चखाण (प्रत्याख्यान ) कर नहीं सके परन्तु अनेक वर्ष की श्रमणोपासक की प्रवा का पालक होवे दशाश्रुतस्कंध में जो श्रावक कहे हैं। उनमें का दर्शन श्रावक को अविरय (अवर्ती) समदृष्टि कहना चाहिये । . ५देश वर्ती गुण स्थान-उक्त ( उपर कही हुई) सात प्रकृति व अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोम एवं ११ प्रकृति का क्षयोपशम करे। ११ प्रकृति का क्षय
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