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श्रीगुणस्थान द्वार ।
( १९७)
उड़द के समान था वो दाल के समान हुवा, कृष्ण पक्षी का शुक्ल पक्षी हुवा अनादि काल से उलटा था जिसका सुलटा हुवा,समकित के सन्मुख हुवा परन्तु पैर भरने समर्थ नहीं। इस पर गौतम स्वामी हाथ जोड़ मान मोड़ वंदना नमस्कार कर श्री भगवंत को पूछने लगे ' हे स्वानीनाथ' इस जीव को किस गुण की प्राप्ति हुई ! तब भगवान ने फरमाया कि जीव ४ गति २४ दंडक में भटक कर उत्कृष्ट देश न्यून अद्ध पुद्गल परावर्तन काल में संसार का पार पायेगा।
प्रवर्ती सम्यक्त्व दृष्टिः-अनन्तानु बंधी क्रोध मान, माया, लोभ, सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय मिश्र मोहनीय इन सात प्रकृति का क्षयोपशम करे अर्थात् ये सात प्रकृति नच उदय में आवे तब क्षय करे और सत्ता में जो दल है उनको उपशम करे उसे क्षयोपशम सम्यक्त्व कहते हैं यह सम्यक्त्व असंख्यात बार आता है, ७ प्रकृति के दलों को सर्वथा उपशमावे तथा ढांके उसे उपशम सम्यक्त्व कहते हैं यह सम्यक्त्व पांच वार आवे । सात प्रकृति के दलों को क्षयोपशम करे उसे क्षायक समकित कहते हैं यह समकित केवल एक वार आवे । इस गुणस्थान पर पाया हुवा जीव जीवादिक नव पदार्थ द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से नोकारसी आदि छमासी तप जाने, सदहे, परुपे परन्तु फरस सके नहीं । तिवारे गौतम स्वामी
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