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________________ ( १८८) थोकडा संग्रह। दुवालस अंग धरे, नव पुव्वी जाव चउदस पुविए । उवसम, गणी पडि मात्र, इइ चउसम नीककन्ने ॥२॥ अर्थः-छद्मस्थ के १० उपयोग, १०, ३ दृष्टि, १३ ४ चारित्र पहेला, १७, १८ श्रावकत्व, दानादि पंचलब्धि २३, ३ वीर्य, २६, ५ इन्द्रिय, ३१, १२, अंग की धारना ४३, नव पूर्व यावत् १४ पूर्व का ज्ञान होना, ४४ उपशम ४५ प्राचार्य की प्रतिमा ४६ एवं ४६ बोल क्षायोपशमिक भाव से निपजे । क्षायोपशमिक निष्पन्न भाव से भी ये ४६ बोल। ५ पारिणामिक भाव से दो भेद सादि पारिणामिक २ अनादि पारिणामिक इन में मे प्रथम पारिणामिक भाव के दश भेद १ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्ति काय ३ आकाशास्तिकाय ४ जीवास्तिकाय ५ पुद्गलास्तिकाय ६ अद्धाकाल ७ भव्य ८ अभव्य ६ लोक १० अलोक ये दश सर्वदा विद्यमान हैं सादि पारिणामिक के भेद नीचे अनुसार। गाथा जुना सुरा, जुना गुला, जुना घियं, जुना तंदुल चेव । अभयं, अभयरुखा, संद्ध गंधव्व नगरा ॥ १ ॥ उकावाए दिसिदाहे, गजीए मिज़्जुए, णिग्याए । जुवए जरूखालिलए, धुमिता महीता रजोघाए ॥ २ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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