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________________ दश द्वार के जीव स्थानक | ( १८३ ) * ५ कर्म की सत्ता द्वार पहिले जीवस्थानक से ग्यारवें जीवस्थानक तक आठ ही कर्मों की सत्ता, बारहवें जीवस्थानक में सात कर्म की सत्ता - मोहनीय कर्म की नहीं, तेरहवें और चौदहवें में चार कर्म की सत्ता - १ वेदनीय कर्म २ आयुष्य कमे ३ नाम कर्म ४ गौत्र कर्म । * ६ कर्म का बंध द्वार पहिला तथा दूसरा जीवस्थानक पर सात तथा आठ कर्म बांधे ( सात बांधे तो आयुष्य कर्म छेड़ कर सात बांधे) चौधे से सातवें जीवस्थानक तक सात तथा आठ कर्म बांधे ऊपर समान तीसरे, आठवें, नवत्रे जीवस्थानक पर सात कर्म बांधे ( आयुष्य कर्म छोड़ कर ) दशवें जीवस्थानक पर ६ कर्म बांधे ( आयुष्य और मोहनीय कर्म छोड़कर) ११ वें १२ वें, १३ वें जीवस्थानक पर एक शांता वेदनीय कर्म बांधे और चौदहवें जीवस्थानक पर एक भी कर्म नहीं बांधे । * ७ कर्म की उदीरणा द्वार पहिला जीव स्थानक पर सात, आठ अथवा छः कर्म की उदीरणा करे ( सात की करे तो वेदनीय कर्म छोड़ कर व छः कर्म की करे तो वेदनीय व आयुष्य कर्म छोड़ कर ) । दूसरे, तीसरे, चौथे व पांचवें जीव स्थानक पर सात For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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