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( १७८ )
थोकडा संग्रह |
की स्थिति जघन्य एक समय की उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की । शाख सूत्र भगवती शतक पच्चीशवां ।
बारहवें जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट अन्तर मुहूर्त की ।
तेरहवें जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट करोड़ पूर्व में देश न्यून |
चौदहवें जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की । वह अन्तर[हूर्त कैसा :
लघु स्वर (ह्रस्व स्वर-अ, इ, उ, ऋ, ऌ, ) का उच्चारण करने में जितना समय लगे उसे अन्तर्मुहूर्त कहते हैं ।
* ४ क्रिया द्वार
काइया क्रिया इत्यादिक २५ क्रिया में से जो २ क्रिया जिस२ जीव स्थानक पर जिन कारणों से लगती है उसका विस्तार पूर्वक वर्णन, कर्म आठ हैं जिनने चोथा मोहनीय कर्म सरदार है । इसकी २८ प्रकृतिः - कर्म प्रकृति के थोकड़े म लिखे हुवे मोहनीय कर्म की प्रकृति की सत्ता, उदय क्षयोपशम, क्षय आदि से जो२ क्रिया लगे और जोर नहीं लगे उसका वर्णनः
(१) पहेला मिथ्यात्व जीव स्थानक पर - मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से अभव्य को २६ प्रकृति की सत्ता है - १ समकित मोहनीय २ मिश्र मोहनीय ये दो छोड़कर
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