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________________ ( १७६ ) ११ उपशान्त मोहनीय जीवस्थानक का लक्षणः जिसने मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति उपशमाई है उसेउपशान्त मोहनीय जीव स्थानक कहते हैं । १२ क्षीण मोहनीय जीवस्थानक का लक्षण:जिसने मोहनीय कर्म की २८ प्रवृत्ति का ६व किया है उसे क्षीण मोहनीय स्थानक कहते हैं । १३ सयोगी केवली जीवस्थानक का लक्षण:-- जो मन वचन व काया के शुभ योग सहित केवल ज्ञान केवल दर्शन में प्रवत रहा है उसे सयोगी केवली जी स्थानक कहते हैं । थोकडा संग्रह | Jain Education International ~~~ १४ अयोगी केवली जीवस्थानक का लक्षण:जो शरीर सहित मन वचन काया के योग रोक कर केवल ज्ञान केवल दर्शन में प्रवत रहा है उन्हें अयोगी केवली जीव स्थानक कहते हैं । * ३ स्थिति द्वार For Private & Personal Use Only - १ मिथ्यात्व जीवस्थानक की स्थिति तीन तरह की (१) अनादि पर्यवसितः - जिस मिथ्यात्व की आदि नहीं और अन्त भी नहीं ऐसा अभव्य जीवों का मिथ्यात्व जानना । (२) अनादि सपर्यवसितः - जिस मिध्यात्व की यदि नहीं परन्तु अन्त है ऐसा भव्य जीवों का मिथ्यात्व जानना । · www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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