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थोकडा संग्रह |
बेइन्द्रियादिक ने अपर्याप्त होत समय होंवे व पर्याप्त होने बाद मिट जावे संज्ञी पंचन्द्रिय को पर्याप्त होने बाद भी होवे उसे साखादान राष्टिहते हैं शाख सूत्र जीवाभिगम दण्डक के अधिकार से ।
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३ मिश्रदृष्टि जीव स्थानक का लक्षणः --जो मिथ्यात्व में से निकला परन्तु जिसने समकिन प्राप्त की नहीं इस बीच में अध्वमाय के रस से प्रवर्तता हुआ श्रायुष्य कर्म बांधे नहीं, काल भी करें नहीं, वहां से थोड़े समय के अन्दर, अनिश्चयता से तीसरे जीव स्थानक से गिर कर पहेले जीव स्थानक अवे अथवा वहां से चौथे यदि जीव स्थानक पर जावे तब आयुष्य बांधे, काल भी करे । शाख सूत्र भगवती शतक तशिवें अथवा २६ वें |
४ व्रती सम दृष्टि जीव स्थानक का लक्षण:जो शंका वा रहित हो कर वीतराग के वचनों पर शुद्ध भाव से श्रद्धान करे तथा प्रतीति लाकर रोचे, चोरी प्रमुख विरुद्ध आचरण श्राचरे नहीं, इसलिये कि उसकी लोक में हिलना होवे नहीं - व व्यवहार में समकित रहे । शाख सूत्र उत्तराध्ययन के २८ वें मोक्ष मार्ग के अध्ययन से |
५ देशवती जीव स्थानक का लक्षणः- जो यथातथ्य समकित सहित, विज्ञान विवेक सहित देश पूर्वक व्रत अङ्गिकार करे, जो जघन्य एक नमोकारशी प्रत्याख्यान तथा एक जीव की घात करने का प्रत्याख्यान
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