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दश द्वार के जीव स्थानक ।
( १७३)
*२ लक्षण द्वार । १ मिथ्यात्व दृष्टि जीव स्थानक का लक्षणइसके दो भेद १ उपाइरित २ तवाइरित ।
१ उपाइरितः-जो कम ज्यादा श्रद्धान करे व परुपे। २ तवा इरित:-जो विपरीत श्रद्धान करे व परुपे।
मिथ्यात्व के चार भेद । (१) एक मूल से ही वीतराग के वचनों पर श्रद्धान नहीं करे ३६३ पांखएडी समान शाख(साक्षी) सूयगडा (सूत्रकृतांग)।
(२) एक कुछ श्रद्धान करे कुछ नहीं करे-जमाली-सूत्र की प्रमुख सात नीन्हवों के समान साक्षी सूत्र उववाई तथा ठाणांग के सातवें ठाणे की ।
(३) एक भागा पीछा कम ज्यादा श्रद्धान करे उदकपेढाल वत् (समान) शाख सूत्र सूय गडांग स्कन्धरअध्ययन ७
___ (४) एक ज्ञान अन्तरादिक तेरह बोल के अन्दर शङ्का कंखा वेदे १ ज्ञानान्तर २ दर्शनान्तर ३ चारित्रान्तर ४ लिङ्गान्तर ५ प्रवचनान्तर ६ प्रावचनान्तर ७ कल्पान्तर ८ मागोन्तर ६ मतान्तर १० भङ्गान्तर ११ नयान्तर १२ नियमान्तर १३ प्रमाणान्तर एवं तेरह अन्तर । शाख सूत्र भगवतो शतक पहेला उदेशा तीसरा ।
२ मास्वादान समदृष्टि जीवस्थानक का लक्षण:जो समाकित छोड़ता २ अन्तमें परास मात्र रह जावे,
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