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छः अारों का वर्णन ।
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विराजमान हुवे । ४ चोथा कल्याणीक, उत्तराषाढा नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की। ५ पांचवा कल्याणीक उत्तराषाढा नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त हुवा व अभिजित नक्षत्र में आप मोक्ष में पधारे । युगलिया धर्म लोप होने बाद गति पांच जानना। ॥ इति तीसरा अारा सम्पूर्ण ॥
चौथा पारा इस प्रकार तीसरा पारा समाप्त होते ही एक करोड़ा करोड़ सागरोपम में ४२००० वर्ष कम का दुःखमा सुखम नामक ( दुख बहुत सुख थोड़ा) चौथा आरा लगता है। तब पहिले से वर्ण गंध रस स्पर्श पुद्गलों की उत्तमता में हीनता हो जाती है कम से घटते घटते मनुष्यों का देह मान ५०० धनुष्य का व आयुष्य करोड़ा करोड़ पूर्व का रह जाता है उतरते आरे सात हाथ का देह मान व २०० वर्ष में कुछ कम का आयुष्य रह जाता है । इस बारे में संघयन छे, संस्थान छ व मनुष्यों के शरीर में ३२ पांसलिये, उतरते आरे केवल १६ पांसलिये रह जाती है । इस बारे की समाप्ति में ७५ वर्ष ८॥ माह जब शेष रह जाते हैं तब दशा प्राणत देवलोक से वीश सागरोपम का आयुष्य भोग कर तथा चव कर माहणकुंड नगरी में ऋषभ दत्त ब्राह्मण के यहां देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में श्री महावीर स्वामी उत्पन्न हुवे जहां आप ८२ रात्रि पर्यन्त रहे । ८३ वीं रात्रि को शकेन्द्र का आसन
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