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थोकडा संग्रह।
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तीसरे आरे की समाप्ति में चौरासी लाख पूर्व तीन वप व साड़े आठ माह जब शेष रह जाते हैं उस समय सर्वार्थसिद्ध विमान में ३३ सागरोपम का आयुष्य भोग कर तथा वहां से चव कर वनिता नगरी के अन्दर 'नाभिराजा के यहां मरुदेवी रानी की कुक्षि (कोख ) में श्री ऋषभ देव स्वामी उत्पन्न हुवे । (माताने) प्रथम ऋषभ का स्वप्न देखा इससे ऋषभ देव नाम रखा गया जिन्होंने युगलिया धर्म मिटा कर १ असि २ मसि ३ कृषि इत्या. दिक ७२ कला पुरुष को सिखाई व ६४ कला स्त्री को। वीश लाख पूर्व तक आप कौमार्य अवस्था में रहे, ६३ लाख पूर्व तक राज्य शासन किया । पश्चात् अपने पुत्र भरत को राज्य भार सौंप कर आपने ४ हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहण की। संयम लेने के एक हजार वर्ष बाद आपको केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा इस प्रकार छद्मस्थ व केवल अवस्था में आप कुल मिला कर एक लाख पूर्व तक संयम पाल कर अष्टापद पर्वत पर पद्म श्रासन से स्थित हो दश हजार साधु के परिवार से निर्वाण पद को प्राप्त हुवे । भगवंत के पांच कल्याणीक उत्तराषाढा नक्षत्र में हुवे । १ पहला कल्याणीक, उत्तराषाढा नक्षत्र में सर्वार्थसिद्ध विमान से चब कर मरू देवी रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुई। २ दसरा कल्याणीक, उत्तराषाढा नक्षत्र में आपका जन्म हुवा । ३ कल्याणीक, उत्तराषाढा नक्षत्र ज्यासन पर
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