SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अाठ कर्म की प्रकृति । (१३६ ) JNANIvanTV * ७ गोत्र कर्म का विस्तार गौत्र कर्म के दो भेद-१ऊंच गौत्र २ नीच गौत्र। गौत्र कर्म की सोलह प्रकृति जिसमें से ऊंच गौत्र की आठ प्रकृति१ जाति विशिष्ट २ कुल विशिष्ट ३ बल विशिष्ट ४ रूप विशिष्ट ५ तप विशिष्ट ६ सूत्र विशिष्ट ७ लाभ विशिष्ट ८ ऐश्वर्य विशिष्ट । - नीच गौत्र की पाठ प्रकृति-१ जाति विहीन २ कुल विहीन ३ बल विहीन ४ रूप विहीन ५ तप विहीन ६ सूत्र विहीन ७ लाभ विहीन ८ ऐश्वर्य विहीन । गौत्र कर्म सोलह प्रकारे बांधेःऊंच गौत्र आठ प्रकारे बांधे १ जाति अमद (अभिमान नहीं करे ) २ कुल अमद ३ बल अमद ४ रूप अमद ५ तप अमद ६ सूत्र अमद ७ लाम अमद ८ ऐश्वर्य अमद । नीच गौत्र अाठ प्रकारे बांधे-१ जाति मद २ कुल मद ३ बल मद ४ रूप मद ५ तप मद ६ सूत्र मद ७ लाभ मद ८ ऐश्वर्य मद । गौत्र कर्म सौलह प्रकारे भोगवे-ऊंच गौत्र आठ प्रकारे भोगवे और नीच गौत्र आठ प्रकारे भोगवे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy