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________________ (१०८) थोकडा संग्रह। १६ योग द्वार इनमें योग पावे चारः-१औदारिक शरीर काय योग २ औंदारिक मिश्र शरीर काय योग ३ कामेण शरीर काय योग ४ व्यवहार वचन योग । १७ उपयोग द्वार बे इन्द्रिय, त्री इन्दिय के अपर्याप्ति में पांच उपयोग १ मति ज्ञान २ श्रत ज्ञान ३ मति अज्ञान ४ श्रुत अज्ञान ५ अचच दर्शन पर्याप्ति में तीन उपयोग-दो अज्ञान और एक-अचक्षु-दर्शन । चौरिन्द्रिय और तिथंच संमूर्णिम पंचेन्द्रिय के अपर्याप्ति में छः उपयोग १ मति ज्ञान उपयोग २ श्रुत ज्ञान उपयोग ३ मति अज्ञान उपयोग ४ श्रुत अज्ञान उपयोग ५ चतु दर्शन ६ अचक्षु । पर्याप्ति में चार उपयोग-दो अज्ञान और दो दर्शन । १८ आहार द्वार आहार छः दिशाओं का लेवे, आहार तीन प्रकार का ओजस् २ रोम ३ कवल और १ सचित २ चित्त ३ मिश्र। १६ उत्पति द्वार २२ चवन द्वार वे इन्द्रिय, त्री इन्द्रिय, चौरिन्द्रिय में, दश दण्डकपांच एकेन्द्रिय, तीन विकलेन्द्रिय, मनुष्य और तिर्यंच-का श्रावे और दश ही दण्डक में जावे । तियेच संमूर्छिम पंचेन्द्रिय में दश दण्डक का आवे- (ऊपर कहे हुवे) और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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