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चे. वीस दण्डक।
( १०१)
नवें देवलोक से स्वार्थ सिद्ध तक एक गति-मनुष्य का आवे और एक गति-मनुष्य-में जावे । ॥ इति नारकी तथा देव लोक का २४ दण्डक ॥
पांच एकन्द्रिय का पांच दण्डक ॥ वायु काय को छोड़ शेष चार एकेन्द्रिय में शरीर तीन १ औदारिक २ तेजस् ३ कार्मण ।
वायुकाय में चार शरीर १ औदारिक २ वैक्रिय ३ तेजस् ४ कार्मण।
अवगाहन द्वार:पृथ्व्यादि चार एकेन्द्रिय को अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग।
वनस्पति की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट हजार योजन जाजेरी कमल नाल पाश्री ।
३ संघयन द्वार:पांच एकेन्द्रिय में सेवात संघयन ।
४ संस्थान द्वार:पांच एकेन्द्रिय में हुण्डक संस्थान ।
५ कषाय द्वार:पांच एकेन्द्रिय में कषाय चार ।
६ संज्ञा द्वार:पांच एकेन्द्रिय में संज्ञा चार ।
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