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चोवीस दण्डक ।
(१७)
१६ उत्पत्ति द्वार और २२ चवन द्वार:
पहली नरक से छठो नरक तक मनुष्य व तिथंच पंचन्द्रिय- इन दो दण्डक के प्रांत हैंदो ही ( मनुष्य, तिर्यच ) दण्डक में जाते हैं।
- सातवीं नरक में दो दण्ड क के अात है-मनुष्य व तिच, व एक दण्डक में-तिर्यंच पंचेन्द्रिय-में जाते हैं।
भवन पति, वाण व्यन्तर, ज्योतिषी तथा पहले दूसरे देवलोक में दो दण्डक-मनुष्य व तिर्यंच के प्रति हैं व पांच दण्डक में जाते हैं १ पृथ्वी २ अप ३ वनस्पति, ४ मनुष्य ५ तिर्यच पंचेद्रिय। .
तीसरे देवलोक से आठवें देवलोक तक दो दण्डक मनुष्य और तिर्यव-का अब और दो ही दण्डक में जाये। । नवमें देवलोक से अनुत्तर विमान तक एक दण्डक मनुष्य का आवे और एक मनुष्य-ही में जावे ।
२० स्थिति द्वारःपहले नरक के नरियों की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक सागर की।
दूसरे नरक की ज० १ सागर की,उ०३ सागर की। तीसरे नरक की ज० ३ सागर की,उ०७ सागर की। चौथे नरक की ज०७ सागर की उ०१० सागर की। पांचवें नरक की ज०१०सागर की, उ०१७सागर की। छठे नरक की ज०१७ सागर की,उ० २२ सागर की।
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