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________________ चोवीस दण्डक । (६१) अवगाहन द्वार:१ पहेली नारकी की अवगाहना जघन्य अङ्गुल के असंख्य तवें भाग,उत्कृष्ट पोना पाठ धनुष्य और छः अङ्गुल। २ मरी नारकी की अवगाहना जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट साड़ा पन्द्रह धनुष्य व चार अङ्गुल । ३ तीसरी नारकी की अवगाहना जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट सवाएकतीस धनुष्य की । ४ चौथी नरक की अवगाहना जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट साड़ा बासठ धनुष्य की । ५ पांचवें नरक की जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें उत्कृष्ट १२५ धनुष्य की। ६ छठे नरक की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट २५० धनुष्य की। ___ ७ सातवें नरक की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की । उत्तर वैक्रिय करे तो जघन्ध अंगुल के असंख्यातवें भाग,उत्कृष्ट-जिस नरक की जितनी उत्कृष्ट अवगाहना है उससे दुगनी वैक्रिय करे (यावत् सातवें नरक की एक हजार अवगाहना जानना ।) १ भवन पति के देव व देवियों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट सात हाथ की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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