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________________ (६०) थोकडा संग्रह। २० स्थिति द्वार:स्थिति जघन्य अन्तर रहते की उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की। २१ मरण द्वार:-समोहिया मरण, असमोहिया मरण । समोहिया मरण जो चींटी की चाल के समान चाले व असमाहिया मरण जो दड़ी के समान चाले ( अथवा बन्दूक की गोला समान) , २२ चवण द्वारः- चोवीस ही दण्ड क में जावे-पहले कहे अनुसार। प्रागति द्वार:-चार गति में से आवे १ नरक गति में से २ तियेच गति में से ३ मनुष्य गति में से ४ देव की गति में से । गति द्वार:-पांच गति में जावे १ नरक गति में २तियञ्च गति में ३ मनुष्य गति में ४ देव गति में ५ सिद्ध गति में। ॥ इति समुच्चय चोवीस द्वार ।। नारकी का एक तथा देवता के तेरह दण्डक एवं १४ दण्डक लिख्यते शरीर द्वार:नारकी में शरीर पावे तान १ वैक्रिय २ तेजस् ३ कार्माण । देवता में शरीर तीन १ वैक्रिय २ तेजस् ३ कार्माण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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