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________________ (८८) योकडा संग्रह। ४ वैक्रिय समुद्घात ५ तेजस् समुद्घात ६ पाहारिक समुद्घात ७ केवल समुद्घात ।। (१०)संज्ञी असंज्ञी द्वारः-जिनमें विचार करने की ( मन ) शक्ति होवे सो संज्ञी और जिनमें ( मन ) विचार करने की शक्ति नहीं होवे सो असंज्ञी। (११) वेद द्वार-वेद तीन-१ स्त्री वेद २ पुरुष वेद ३ नपुसंक वेद। (१२) पार्याप्ति द्वार-पर्याप्ति छः- १ आहार पर्याप्ति २ शरीर पर्याप्ति ३ इन्द्रिय पर्याप्ति ४ श्वासोश्वास पर्याप्ति ५ मनः पर्याप्ति ६ भाषा पर्याप्ति । . (१३) दृष्टि द्वार-दृष्टि तीन--१ समयग दृष्टि २ मिथ्यात्व दृष्टि ३ सम मिथ्यात्व ( मिश्र) दृष्टि । (१४)दर्शन द्वार-दर्शन चार-१ चक्षु दर्शन २ अचतु दर्शन ३ अवधि दर्शन ४ केवल दर्शन । (१५)ज्ञान अज्ञान द्वार-ज्ञान पांच-१मति ज्ञानरश्रुत ज्ञान ३ अवधि ज्ञान ४ मनः पर्यव ज्ञान ५ केवल ज्ञान । अज्ञान तीन-१ मति अज्ञान २ श्रुत अज्ञान ३ विभंग ज्ञान । (१६) योग द्वार-योग पन्द्रह-१ सत्य मन योग २ असत्य मन योग ३ मिश्र मन योग ४ व्यवहार मन योग ५ सत्य वचन योग ६ असत्य वचन योग ७ मिश्र वचन योग ८ व्यवहार वचन योग 8 औदारिक शरीर काय योग १० औदारिक मिश्र शरीर काय योग ११ वैक्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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