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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ५१
धन मँगवाता है। रानी को परिज्ञात होने पर उसने राजा को समझाने के लिए एक उपाय किया। राजप्रांगण में कसाई के घर से माँस मँगवाकर चारों ओर बिखेर दिया। सीधे मार्ग को छोड़कर सभी तरफ जाल लगवा दिया। माँस को देखकर दूर-दूर से गिद्ध आये । उन्होंने भरपेट माँस खाया। जो गिद्ध समझदार थे, उन्होंने सोचा-‘हम माँस खाकर बहुत ही भारी हो चुके हैं, जिससे हम सीधे नहीं उड़ सकेंगे।' उन्होंने खाया हुआ माँस वमन के द्वारा बाहर निकाल दिया। हल्के होकर मार्ग से उड़ गये, वे जाल में नहीं फँसे । पर जो गिद्ध बुद्ध थे, वे प्रसन्न होकर गिद्धों के द्वारा वमित माँस को खाकर अत्यधिक भारी हो गये । वे गिद्ध सीधे उड़ नहीं सकते थे। टेढ़े-मेढ़े उड़ने से वे जाल में फँस गये। उन फँसे हुए गिद्धों में से एक गिद्ध महारानी के पास लाया गया । महारानी ने राजा से निवेदन किया- " आप भी गवाक्ष से राजप्रांगण में गिद्धों का दृश्य देखें । जो गिद्ध खाकर वमन कर रहे हैं, वे अनन्त आकाश में उड़े जा रहे हैं और जी खाकर वमन नहीं कर रहे हैं, वे मेरे चंगुल में फँस गये हैं ।” १५२
सरपेण्टियर ने प्रस्तुत अध्ययन की ४९ से ५३वीं गाथाओं को मूल नहीं माना है। उनका अभिमत है - ये पाँचों गाथाएँ मूलकथा से सम्बन्धित नहीं हैं। सम्भव है जैन कथाकारों ने बाद में निर्माण कर यहाँ रखा हो' 'उपर उसका उन्होंने कोई ठोस आधार नहीं दिया है।
प्रस्तुत कथानक में आये हुए संवाद से मिलता-जुलता वर्णन मार्कण्डेयपुराण में भी प्राप्त होता है। वहाँ पर जैमिनि ने पक्षियों से प्राणियों के जन्म आदि के सम्बन्ध में विविध जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की हैं । उन जिज्ञासाओं के समाधान में उन्होंने एक संवाद प्रस्तुत किया- भार्गव ब्राह्मण ने अपने पुत्र धर्मात्मा सुमति को कहा - " वत्स ! पहले वेदों का अध्ययन करके गुरु की सेवा-शुश्रूषा कर, गार्हस्थ्य जीवन सम्पन्न कर, यज्ञ आदि कर | फिर पुत्रों को जन्म देकर संन्यास ग्रहण करना, उससे पहले नहीं ।" मति ने पिता से निवेदन किया- “पिताजी ! जिन क्रियाओं को करने का आप मुझे आदेश दे रहे हैं, वे क्रियाएँ मैं अनेक बार कर चुका हूँ। मैंने विविध शास्त्रों का व शिल्पों का अध्ययन भी अनेक बार किया है। मुझे यह अच्छी तरह से परिज्ञात हो गया है कि मेरे लिए वेदों का क्या प्रयोजन है ?१५५ मैंने इस विराट् विश्व में बहुत ही परिभ्रमण किया है। अनेक माता- - पिता के साथ मेरा सम्बन्ध हुआ । संयोग और वियोग की घड़ियाँ भी देखने को मिलीं । विविध प्रकार के सुखों और
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