________________ मूलसूत्र : एक परिशीलन प्रस्तुत कृति परिचय जैनधर्म-परम्परा का आधार है आगम। आगमों में मूल आगम-अर्थात् अहिंसा, सत्य आदि पांच महाव्रतों के सम्यक् परिपालन की विधि-निषेध रूप आचार मार्ग का प्रतिपादक शास्त्र मूल सूत्र है। मूल के आधार पर ही विचारों का भव्य मन्दिर टिकता है। इसलिए सबसे पहले ज्ञेय-उपादेय है आचारधर्म। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज ने चारों मूल सूत्रों के विषयों पर, उनमें आये हए विधि-निषेधों का तथा आचार, तत्त्वज्ञान आदि के भेद-प्रभेदों का अर्थ, व्यारव्या, विवेचन करते हुए उनसे सम्बन्धित सभी विषयों पर ऐतिहासिक दृष्टि से गम्भीर विवेचन तथा तुलनात्मक समीक्षण प्रस्तुत किया है। जिज्ञासु की दृष्टि में उठने वाली जिज्ञासाओं का; तार्किक की दृष्टि में उठने वाली तकों का और बुद्धिवादी की दृष्टि में, मत-मतान्तरों की शैली के विषय में उठने वाले प्रश्नों का स्वयं ही जिज्ञासु, तार्किक और शोधक बनकर उठाया है और उनका युक्तियुक्त समाधान प्रस्तुत किया है, इस विवेचन में। इन प्रस्तावनाओं को पढ़कर आप चार मूल सूत्रों के सम्बन्ध में वह सब कुछ जान सकते हैं, जो जानना आवश्यक है। वह समझ सकते हैं; जो छोड़ना आवश्यक है और स्वीकार करना है। मनोयोग पूर्वक पढ़िये और अपनी ज्ञान दृष्टि को विस्तृत, बहुआयामी, सुस्पष्ट बनाइये। -श्रीचन्द सुराना 'सरस' Jain Education International & For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org