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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३८३ .
२०६. (क) आवश्यकनियुक्ति ३६५-३७०
(ख) विशेषावश्यक भाष्य, गा. २२८४-२२९५ (ग) आवश्यकनियुक्ति, गा. ७६२
(घ) विशेषावश्यक भाष्य, गा. २२७९ २०७. “वंदामि अज्जरक्खिय-समणे, रक्खिय चरित्त सव्वस्से।
रयणकरंडगभूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहिं॥' –नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ३२ २०८. “इन्थं वसु-पूसमित्तो घयपूसमित्तो दुबलियापूसमित्तो अ लद्धिसंपन्ना विहरिया।"
-विविध तीर्थकल्प, पृ. १९ २०९. देखें-नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ३३ २१०. “वड्ढउ वायगवंसो, जसवंसो अज्ज-नागहत्थीणं। वागरण-करण-भंगिय-कम्पपयडी-पहाणाणं ॥३४॥"
-नन्दी स्थविरावली, मलय वृत्ति २११. “जज्चंजण-धाउ-समप्पहाणं, मुद्दिय-कुवलय-निहाणं। वड्ढउ वायगवंसो, देवइ-नक्खन्त-नामाणं॥३५॥"
-नन्दी स्थविरावली हिन्दी टीका (आचार्य श्री आत्माराम जी म.) २१२. “अयलपुराणिक्खंते, कालिय-सुय-आणुओगिए धीरे।. बंभदीवक-सीहे, वायग-पयमुत्तमं पत्ते॥३६॥"
-वही २१३. वीर निर्वाण संवत् और जैनकालगणना (हिमवन्त स्थविरावली) (पं. कल्याण -
विजय जी) २१४. जैनधर्म के प्रभावक आचार्य (साध्वी संघमित्रा) से भाव ग्रहण, पृ. १८४-१८५ २१५. (क) वही, पृ. १८३
(ख) “बारस-संवच्छरिए महंते दुभिक्खकाले भत्तट्ठा अण्णण्णतो किडिताणं __गहण-गुणणाणुप्पेहा भावातो सुत्ते विप्पणढे। पुणो सुब्भिक्खकाले जाए मधुदाए महते साधुसमुदए खंधिलायरिय-प्पमुह-संघेण जो जं संभरति त्ति एवं संघडितं ॥ (ज. १९० प्र.) कालिययुत्तं। जम्हा य एवं मधुराए कत्तं, तम्हा माधुरा वायणा भण्णति।"
__ -नन्दीसूत्रचूर्णि, पृ. ९ २१६. नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ३७, हिन्दी टीका २१७. जैनधर्म के प्रभावक आचार्य (साध्वी संघमित्रा) से भाव ग्रहण, पृ. १८४-१८५ २१८. नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ३८, हिन्दी टीका से भाव ग्रहण, पृ. ४१ २१९. वही, हिन्दी टीका, गा. ३९ से भाव ग्रहण, पृ. ४२ ।। २२०. . . . . . . . तत्तो दुर्भिक्षातिक्रमे सुभिक्षप्रवृत्तौ द्वयोः संघयोर्मेलापकोऽभवत्।
तद्यथा-एकोवल्लभ्याम् एकोमथुरायाम्। तत्र च सूत्रार्थ-संघटने परस्पर-वाचना भेदो जातः। विस्मृतयोर्हि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा भवत्यवश्य-वाचनाभेदो न काचिदनुमपत्तिः।"
-ज्योतिष्ककरण्डक टीका
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