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________________ * ३६४ * मूलसूत्र : एक परिशीलन पुण्यविजय जी ने इस शास्त्र के अक्षरों की गणना के हिसाब से २०,६८६ अक्षर तथा तदनुसार ६४६ श्लोक एवं १४ अक्षर-परिमाण इसका ग्रन्थपरिमाण निर्धारित किया है।२२९ नन्दीसूत्र पर व्याख्या ग्रन्थ नियुक्ति ___ आगमों पर लिखी हुई सबसे प्राचीन व्याख्या नियुक्ति है। आगमों पर जितनी भी नियुक्तियाँ मिलती हैं, वे सब पद्य में हैं। उसकी भाषा प्राकृत है। नियुक्तियों में प्रत्येक अध्ययन की भूमिका तथा प्रकरण से सम्बन्धित विषयों के आशय को स्वयं करने का प्रयास किया गया है। नियुक्ति के आद्य-प्रणेता आचार्य भद्रबाहु स्वामी जी माने जाते हैं। उन्होंने आवश्यकसूत्र, दशवैकालिक, निशीथसूत्र, बृहत्कल्प, उत्तराध्ययनसूत्र, आचारांग, सूत्रकृतांग एवं सूर्यप्रज्ञप्ति आदि सूत्रों पर नियुक्तियों की रचना की है, किन्तु नन्दीसूत्र पर अद्यावधि किसी भी नियुक्तिकार की नियुक्ति देखने में नहीं आई। इतना अवश्य कहा जा सकता है, ये नियुक्तिकार आचार्य देववाचकगणी से पहले हुए हैं। नन्दीसूत्र पर चूर्णि ___ चूर्णिकारों में जिनदास महत्तर का स्थान प्रथम पंक्ति में आता है। चूर्णियाँ प्रायः गद्यात्मक हैं। जैसे चूर्ण में अनेक वस्तुओं का सम्मिश्रमण होता है, वैसे ही चूर्णि की मुख्य भाषा प्राकृत होते हुए भी उसमें संस्कृत भाषा के अतिरिक्त शौरसेनी, अर्ध-मागधी आदि देशीय भाषाओं का भी सम्मिश्रण है। चूर्णि की रचना का लक्ष्य भी क्लिष्ट विषय को विशद करके समझाने का रहा है। जिनदास महत्तर ने आचारांग, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, निशीथ, दशाश्रुतस्कन्ध एवं नन्दीसूत्र आदि सूत्रों पर चूर्णि की रचना की है। नन्दीसूत्रचूर्णि का ग्रन्थाग्र अनुमानतः १,५०० गाथाओं के परिमाण जितना माना जाता है। नन्दीसूत्र पर मलयगिरि की बृहत् संस्कृत वृत्ति ___ आचार्य मलयगिरि अपने युग के महान् दार्शनिक, आगम व्याख्याकार आचार्य हुए हैं। उन्होंने राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, आवश्यकसूत्र, नन्दीसूत्र आदि आगमों पर दार्शनिक शैली में महत्त्वपूर्ण बृहद् वृत्तियाँ (व्याख्याएँ) लिखी हैं। नन्दीसूत्र पर आपके द्वारा लिखी हुई प्रांजल व्याख्या विशेष रूप से पठनीय है। जैन संस्कारों से सुसंस्कृत होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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