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________________ उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन २९ अभाव होने से नहीं हैं। दसवें गुणस्थान में अत्यल्प मोह रहता है । इसलिए प्रस्तुत गुणस्थान में भी मोहजन्य आठ परीषह सम्भव न होने से केवल चौदह होते हैं। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान ७८ में (१) क्षुधा, (२) पिपासा, (३) शीत, (४) उष्ण, (५) दंश-मशक, (६) चर्या, (७) वध, (८) रोग, (९) शय्या, (१०) तृणस्पर्श, और (११) जल्ल, ये वेदनीयजनित ग्यारह परीषह सम्भव हैं। इन गुणस्थानों में घातिकर्मों का अभाव होने से शेष ग्यारह परीषह नहीं हैं । यहाँ पर यह स्मरण रखना होगा कि १३वें और १४वें गुणस्थानों में परीषहों के विषय में दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों के दृष्टिकोण में किंचित् अन्तर है और उसका मूल कारण है - दिगम्बर परम्परा केवली में कवलाहार नहीं मानती है। उसके अभिमतानुसार सर्वज्ञ में क्षुधा आदि ग्यारह परीषह तो हैं, पर मोह का अभाव होने से क्षुधा आदि वेदना रूप न होने के कारण उपचार मात्र से परीषह हैं । ७९ उन्होंने दूसरी व्याख्या भी की है । 'न' शब्द का अध्याहार करके यह अर्थ लगाया है - जिनमें वेदनीय कर्म होने पर भी तदाश्रित क्षुधा आदि ग्यारह परीषह मोह के अभाव के कारण बाधा रूप न होने से हैं ही नहीं । सुत्तनिपात ८० में तथागत बुद्ध ने कहा- "मुनि शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा, वात, आतप, दंश और सरीसृप का सामना कर खड्गविषाण की तरह अकेला विचरण करे । यद्यपि बौद्ध साहित्य में कायक्लेश को किंचित् मात्र भी महत्त्व नहीं दिया गया, किन्तु श्रमण के लिए परीषह - सहन करने पर उन्होंने भी बल दिया है। कितनी ही गाथाओं की तुलना बौद्ध ग्रन्थ - थेरगाथा, सुत्तनिपात तथा धम्मपद और वैदिक ग्रन्थ- महाभारत, भागवत और मनुस्मृति में आये हुए पद्यों के साथ की जा सकती है । उदाहरण के रूप में हम आगे वह तुलना दे रहे हैं। देखिए - "कालीपव्वंगसंकासे, किसे धमणिसंतए । मायने असणपाणस्स, अदीणमनसो चरे ॥" तुलना कीजिए "काल (ला) पव्वंगसंकासो, किसो धम्मनिसन्थतो । मत्तज्ञू अन्नपाणम्हि, अदीनमनसो नरो ॥” Jain Education International For Private & Personal Use Only - उत्तराध्ययन २/३ - थेरगाथा २४६, ६८६ www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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