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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३२७ * -.-.-.-.-.करने का अभिग्रह करके चातुर्मास व्यतीत किया। चातुर्मास की सम्पन्नता पर जब चारों मुनि आचार्य सम्भूतविजय के पास आये तो उन्होंने तीन मुनियों का 'दुष्कर क्रिया के साधक' कहकर तथा मुनि स्थूलभद्र का महादुष्कर क्रिया के साधक, से सम्बोधित कर स्वागत-सत्कार किया।
आचार्य सम्भूतविजय का श्रमणीवर्ग भी अत्यन्त प्रभावक था। महामात्य शकडाल की सात पुत्रियाँ-यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा आचार्य सम्भूतविजय के पास दीक्षित हुई थीं।१४९ इनमें से साध्वी यक्षा जैनशासन की गौरवशालिनी महासाध्वी थी। अतीव सुकुमाल श्रीयक मुनि को ज्येष्ठभगिनी साध्वी यक्षा ने पर्युषण पर्व के दिन उपवास की प्रेरणा दी। उपवास तप के दौरान रात्रि में भयंकर कष्ट होने से देव-गुरु का स्मरण करता हुआ मुनि श्रीयक स्वर्गवासी हुआ। भ्राता श्रीयक मुनि के स्वर्गवास का कारण स्वयं को मानती हुई साध्वी यक्षा अपने मनस्ताप के निवारणार्थ शासनदेवी की सहायता से महाविदेह क्षेत्र में जाकर तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी के श्रीमुख से स्वयं को निर्दोषता सिद्ध करवाई। साथ ही उनके मुखकमल से निःसृत वाणी को ज्यों की त्यों स्मृति में रखकर श्रीसंघ को प्रदान की। अतिप्रसिद्ध चार चूलिकाएँ साध्वी यक्षा को प्राप्त हुईं, इनमें से दो चूलिकाएँ दशवैकालिकसूत्र के साथ और दो चूलिकाएँ आचारांगसूत्र के साथ संयोजित की गईं।१५० ।। ___ आचार्य यशोभद्र का स्वर्गवास वीर निर्वाण सं. १४८ में हुआ था। स्थूलभद्र की दीक्षा आचार्य यशोभद्र की अनुमति से आचार्य सम्भूतविजय के द्वारा हुई थी। इससे यह सिद्ध होता है कि आचार्य यशोभद्र की विद्यमानता में ही आचार्य सम्भूतविजय को दीक्षा प्रदान करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। सम्भव है, उस समय धर्मसंघ की ऐसी व्यवस्था चालू हो गई हो। __ आचार्य सम्भूतविजय जी ने ४० वर्ष तक संयम-पर्याय का पालन किया। उसमें ८ वर्ष आचार्यत्व काल का था। अपनी प्रखर ज्ञान-रश्मियों से सहस्रों भव्य जनों को प्रतिबोध देते हुए आचार्य सम्भूतविजय जी वीर निर्वाण सं. १५६ (विक्रम पूर्व ३१४) में स्वर्गगामी हुए। विशेष ज्ञातव्य __ आचार्य सम्भूतविजय जी के आचार्यकाल में नन्द राज्य उत्कर्ष पर था। उनके समय में नौवें नन्द का राज्यकाल चल रहा था; क्योंकि नौवें नन्द के महामात्य शकडाल परिवार की ९ दीक्षाएँ-(स्थूलभद्र, श्रीयक एवं इनकी सात भगिनियों की दीक्षाएँ) आचार्य सम्भूतविजय के द्वारा हुई थीं।
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