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________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३१७ ____ आचार्य जम्बू १६ वर्ष तक गृहस्थ-जीवन में रहे। मुनि-पर्याय के ६४ वर्षों में से ४४ वर्ष तक भगवान महावीर के शासन के द्वितीय पट्टधर के रूप में आचार्य पद पर रहे। उनकी पूर्ण आयु ८० वर्ष की थी। छत्तीस वर्ष की आयु में उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। जन-जन को ज्ञान-रश्मियों से आलोकित कर ज्योति-पुंज आर्य जम्बू वीर निर्वाण ६४ (तदनुसार विक्रम पू. ४०६) में मथुरा में निर्वाण पद को प्राप्त हुए।३१ जम्बू महान् समर्थ आचार्य थे। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा जम्बू को समान आदर देती हैं। इनके समय तक धर्मसंघ में किसी प्रकार की भेद-रेखा नहीं उभरी थी। आर्य जम्बू को दोनों ही परम्पराएँ अन्तिम मुक्तिगामी मानती हैं। विशेष ज्ञातव्य (क) वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार के आख्यान जैन कथा साहित्य की अनमोल निधि है। संसार में सारभूत वस्तु प्रव्रज्या है; यह सत्य-तथ्य माता-पिता को समझाने के लिए विशिष्ट प्रज्ञा-सम्पन्न जम्बू ने विशिष्ट परिज्ञा-सम्पन्न श्रेष्ठीपुत्र का आख्यान सुनाया। (ख) विषय-लोलुपता की भयावहता को समझाने के लिए जम्बू ने एक बन्दर का दृष्टान्त सुनाया, जो विषयासक्ति के कारण शिलाजीत से चिपककर मर गया था। (ग) जम्बूकुमार की समुद्रश्री आदि आठ नव-विवाहिता पत्नियों ने विरक्त जम्बूकुमार को संयममार्ग पर चढ़ने से रोकने और सहज प्राप्त विपुल सुखसामग्री का भोगोपभोग करने की अनुरोधपूर्ण प्रार्थना करते हुए क्रमशः ८ दृष्टान्त सुनाए; जम्बूकुमार ने भी आठों पत्नियों द्वारा प्रस्तुत किये गये ८ मार्मिक दृष्टान्तों के उत्तर में उनसे भी प्रखर वैराग्योत्पादक ८ दृष्टान्त सुनाए जिन्हें सुनकर उनकी वासना-शक्ति क्षीण हो गई। (घ) “तथाकथित विषयसुख ‘मधुबिन्दु' के समान अतितुच्छ, नगण्य, आपात रमणीय एवं क्षणिक है।'' यह तथ्य प्रभव चोर को समझाने के लिए जम्बू ने 'मधुबिन्दु' का दृष्टान्त कहा। (ङ) गर्भावास के दारुण दुःखों का अनुभव कराने हेतु 'ललिताङ्ग' का दृष्टान्त सुनाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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